Thursday, October 20, 2011

Happy Deewaali

सदियों से हम, साल में इक दिन, घर-घर दीप जलाते हैं |
इस दिन को कह कर दीवाली, खुशियाँ बहुत मनाते हैं ||
दीप जलें, अंधियारा भागे, हो जाता उजियारा है |
हर दिन ख़ुशी के दीप जलाएं, बनता फ़र्ज़ हमारा है ||  
ऐसा कर दिखलाना होगा, हर दिन ही दीवाली हो |
घर-घर रौशन हो, खुशियाँ हो, कोई रात न काली हो ||
ख़ुशी मनाओ, खुशियाँ बांटो, अपना लक्ष्य बनाओ सब |
हर दिन दीवाली बन जाए, ऐसा कर दिखलाओ सब ||
सबको दिवाली, मंगलमय हो,सबके घर खुशियों की जय हो |
जब भी दीप जलाना सारे, 'शशि' भूल ना जाना सारे ||
happy deewaali 
सुबह माँगा यही रब्ब से, बना जब था स्वाली सा |
सबका अगली दिवाली तक, हो हर इक दिन दीवाली सा || 

Wednesday, October 12, 2011

on his retirement


हकीकत को बयाँ, करने लगा हूँ |
फ़िक्र में, डूबने-तरने लगा हूँ ||
बुढ़ापे से मैं, डरने लग गया हूँ |   
दुआ अल्लाह से, करने, लग गया हूँ ||
मुझे मोहताज़ न करना, ज़हाँ का |
सफ़र बेशक, ख़तम करना, यहाँ का ||
मुझे फर्जों से, फ़ारिग कर दिया है |
मेरा दामन, सुकूँ से, भर दिया है ||
चला जाऊँ, ज़हाँ से, चलते-फिरते ||
पड़े जीना कभी न, गिरते-पड़ते ||
'शशि' को इतनी ही, बस ज़िन्दगी दे |

Tuesday, October 4, 2011

maa ki ustuti


तर्ज़:- ज़रा सामने तो आओ छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज़ है  
शेराँ वाली है, माँ संसार दी, सारे जग दी है बिगड़ी सँवार दी |
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी ||   
दूर करे माँ, दुःख बच्चेयाँ दे, माँ दी शान निराली ऐ |
जो सुख देवे, दुःख हर लेवे, ओह माँ शेराँ वाली ऐ ||
माँ देंदी है सुख, दिल खोल के , कदे किसे नूँ वी न दुत्कारदी | 
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी || 
रिश्ते- नाते मतलब दे ने, हर पासे बदहाली ऐ |
जिस नूँ अपना कह सकदे हाँ, ओह माँ शेराँ वाली ऐ ||
सारी संगत है, अर्ज़ गुजार दी, कर बारिश माँ सब्र-औ-करार दी |
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी ||
माँ तेरे चरणा विच बह के, 'शशि' ने अर्ज़ सुनानी ऐ |
तेरी कृपा, तेरी रहमत नल, अपनी आस पुजानी ऐ ||
कर कृपा ते कष्ट मिटा मेरे, गल मन्न लै माँ भुल्लन हार दी ||
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी || 

shor-e-dil


तर्ज़:- ज़रा सामने तो आओ छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज़ है  
शेराँ वाली है, माँ संसार दी, सारे जग दी है बिगड़ी सँवार दी |
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी ||   
दूर करे माँ, दुःख बच्चेयाँ दे, माँ दी शान निराली ऐ |
जो सुख देवे, दुःख हर लेवे, ओह माँ शेराँ वाली ऐ ||
माँ देंदी है सुख, दिल खोल के , कदे किसे नूँ वी न दुत्कारदी | 
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी || 
रिश्ते- नाते मतलब दे ने, हर पासे बदहाली ऐ |
जिस नूँ अपना कह सकदे हाँ, ओह माँ शेराँ वाली ऐ ||
सारी संगत है, अर्ज़ गुजार दी, कर बारिश माँ सब्र-औ-करार दी |
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी ||
माँ तेरे चरणा विच बह के, 'शशि' ने अर्ज़ सुनानी ऐ |
तेरी कृपा, तेरी रहमत नल, अपनी आस पुजानी ऐ ||
कर कृपा ते कष्ट मिटा मेरे, गल मन्न लै माँ भुल्लन हार दी ||
हर इक दी सुने, फ़रियाद माँ, माँ मूरत है सच्चे प्यार दी || 

 

Thursday, September 22, 2011

दोहे

गम मत कर,चाहे जगत में, होवे हार या जीत |
फानी यह संसार है, नफरत करो या प्रीत ||
खोजत-खोजत खो गए, जाने कितने लोग |
भूल गए इस कथन को, मन जीते-जग जीत ||

Wednesday, September 14, 2011


हिंदी प्रसार
है लक्ष्य यह हमारा, हिंदी का हो पसारा |
हिंदी के दीप से ही, सम्भव है उजियारा ||
हमें मात्रभाषा को ही, है बनाना राष्ट्र- भाषा |
इससे ही बढ सकेगी, साक्षरता  की आशा ||
हिंदी में काम करना, हमें चाहिए अब सारा ||है लक्ष्य यह हमारा, हिंदी का हो पसारा |
हिंदी सी मधुर वाणी, नहीं विश्व में है कोई |  
हिंदी ने अपनी शोभा, नहीं आज-तक है खोई ||
हिंदी में ही रचित है, इतिहास सब हमारा | है लक्ष्य यह हमारा, हिंदी का हो पसारा |
हिंदी कि शान अपनी, हिंदी है जान अपनी |
हिंदी से ही बनेगी, जग में पहचान अपनी ||
हिंदी सी सरल भाषा, बने सब का ही सहारा |  है लक्ष्य यह हमारा, हिंदी का हो पसारा |
देखें आकाश-गंगा, भाषाओं की बनी जो |
पाओगे भिन्न सबसे, हिंदी की ही छवि को ||
हिंदी 'शशि' है नभ में, भाषाएँ सब है तारा | है लक्ष्य यह हमारा, हिंदी का हो पसारा |

हिंदी-दिवस
               

हिंदी-दिवस मनाना, है असल में बहाना |
इसके बज़ट से सत्ता, को ज़श्न है मनाना || 
सालों से आज-तक हम, ये दिन मना रहे हैं |
हर साल आंकड़ों को, ऊँचा दिखा रहे है ||
सच क्या है कौन जाने, है झूठ का ज़माना |
सब लीडरों के बच्चे, अंग्रेजी पढ़ रहे हैं | 
हिंदी है मात्र-भाषा, फिर भी वो अड़ रहे हैं ||
'शशि', चाहते हैं हिंदी,की वो छवि घटाना |

Monday, September 12, 2011

shor-e-dil

आसमाँ पे ईश्वर, धरती पे माँ-बाप |
झेलें जो, संतान की खातिर सब संताप || 
इश, गुरु, माँ-बाप की, ले-ले जो आशीष |
उसकी तीनो लोक में, न होवे तफ्तीश ||

Friday, September 9, 2011

मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ



मैं कैसे कहूँ की मैं क्या चाहता हूँ |
सिर्फ आदमी मैं बना चाहता हूँ ||
ज़माने को देना बता चाहता हूँ |  
ज़मीं को मैं ज़न्नत-नुमाँ चाहता हूँ ||  मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
तवक्को  से बहतर ज़हाँ चाहता हूँ |
निगाहों में, आब-ऐ-हया चाहता हूँ ||
हर इक दिल में, खौफ-ऐ-खुदा चाहता हूँ |
अमन की मैं हर-सू फिजा चाहता हूँ || मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
न उल्फत का अपनी सिला चाहता हूँ |
न करना ज़ुबां से, गिला चाहता हूँ ||
मैं हर दिल को, गुल सा, खिला चाहता हूँ |
मैं खुद को, खुदा से मिला चाहता हूँ ||मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
न नफरत का नाम-ओ-निशाँ चाहता हूँ |
ज़माने का रब्ब से, भला चाहता हूँ ||
मैं हर लब पे, हर पल, दुआ चाहता हूँ |
खुदा न सही, नाखुदा चाहता हूँ ||मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
किसी से न होना, खफा चाहता हूँ |
हर इक दिल में रहना बसा चाहता हूँ ||
खुदा से कहूँ , शुक्रिया, चाहता हूँ |
मैं रस्ते का बनना, दिया चाहता हूँ ||  मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ 

मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ


मैं कैसे कहूँ की मैं क्या चाहता हूँ |
सिर्फ आदमी मैं बना चाहता हूँ ||
ज़माने को देना बता चाहता हूँ |  


तवक्को  से बहतर ज़हाँ चाहता हूँ |
ज़मीं को मैं ज़न्नत-नुमाँ चाहता हूँ ||  मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
निगाहों में, आब-ऐ-हया चाहता हूँ ||
हर इक दिल में, खौफ-ऐ-खुदा चाहता हूँ |
अमन की मैं हर-सू फिजा चाहता हूँ || मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
न उल्फत का अपनी सिला चाहता हूँ |
न करना ज़ुबां से, गिला चाहता हूँ ||
मैं हर दिल को, गुल सा, खिला चाहता हूँ |
मैं खुद को, खुदा से मिला चाहता हूँ ||मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
न नफरत का नाम-ओ-निशाँ चाहता हूँ |
ज़माने का रब्ब से, भला चाहता हूँ ||
मैं हर लब पे, हर पल, दुआ चाहता हूँ |
खुदा न सही, नाखुदा चाहता हूँ ||मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
किसी से न होना, खफा चाहता हूँ |
हर इक दिल में रहना बसा चाहता हूँ ||
खुदा से कहूँ , शुक्रिया, चाहता हूँ |
मैं रस्ते का बनना, दिया चाहता हूँ ||  मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ 

Wednesday, August 17, 2011

हमारा देश


 स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
इक तिरंगा ही सभी का, मन-पसंद परिवेश है ||
भिन्न-भिन्न हैं प्रांत इसमें, भिन्न-भिन्न इसमें धर्म |
अनेकता मैं एकता का, जग को ये सन्देश है || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
शान्ति का दूत जग मैं, पंचशील इसका नियम | 
इसका जो संविधान है,सर्व-धर्म निरपेक्ष है || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
 सुबहें इसकी हैं सुहानीं, इसकी रातें हैं रंगीन |
जितने मौसम, मन लुभाने, इसके सब दरवेश हैं || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
इसकी अलग पहचान है, जग में निराली शान है |
'मेरा भारत महान है, पलने न दे जो द्वेष है || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है | 
    

Sunday, August 14, 2011

पन्द्रह अगस्त

माना त्यौहार भारत के, सब मस्त हैं |
सबसे प्यारा लगे, पन्द्रह अगस्त है ||
इस पर्व की, अनोखी ही पहचान है |
हर तरफ गूँजता, राष्ट्रीय गान है |
भारतीय करते अपने पे, अभिमान हैं ||
इसकी शोभा बढायें, जो सिद्धहस्त हैं || सबसे प्यारा लगे, पन्द्रह अगस्त है ||
इक ख़ुशी की लहर,बन के आता है यह |   
सबके मस्तिष्क पर, छा ही जाता है यह ||
हमको पाके सजग, मुस्कुराता है यह |
इसकी रक्षा को तत्पर, सब सशक्त हैं || सबसे प्यारा लगे, पन्द्रह अगस्त है ||
इसकी खातिर हुए, जितने कुर्बान हैं |
उनकी इतिहास मैं, अपनी ही शान है || 
जो आज़ादी की रक्षा, का दें ज्ञान हैं |  
'शशि' उनके लिए, आज नत-मस्त है |

Tuesday, August 9, 2011

soofi

सबकी बिगड़ी, सँवार देती है |
सबको माँ जैसा, प्यार देती है ||
 
माँगने की तरह तो, मांगो तुम |
माँ मुरादें, हज़ार देती है ||
मांग कर पा लिया, तो कहता हूँ |
माँ तो भर सब, भंडार देती है || 
जो फंसा हो, भंवर के, चक्कर में |
माँ पुकारे, माँ तार देती है || 
माँ को मोहना, भी कोई मुश्किल है |
सर झुका, माँ दुलार, देती है ||
माँ की ममता, का मोल, क्या दे 'शशि' |
माँ तो कर, जाँ निसार देती है || 
2

दरींचा बे-सदा कोई नहीं है ;- गुलाम अली 

तुम्हारे दर सा कोई, दर नहीं है |
कहीं भी और, झुकता सर नहीं है ||
सुकूँ मिलता है जो, दिल को यहाँ पर |
बराबर उसके, कोई ज़र नहीं है ||
ठिकाना कर लिया, दर पर तुम्हारे |
बदलते क्यूँ तेरे, तेवर नहीं हैं ||
जी तेरे नाम का, ले-ले सहारा |
वो इस दुनियाँ को, समझे घर नहीं है ||
जिसे शक्ति ने शक्ति, बख्श दी हो |
उसे लगता 'शशि' कोई, डर नहीं है ||

Sunday, August 7, 2011

walwale




उसको, मुजरिम हर-एक ने जाना |
दर्द उसका, गया न पहचाना || 
उसके जीने का, जो सहारा था |
उसने ही, कर लिया किनारा था ||
उसको आया नहीं, मन पाना |
दर्द उसका -------------
उसका हमदम हुआ, जुदा उससे |
बेवजह ही हुआ, खफा उससे ||
आज भी जिसका, है वो दीवाना |
दर्द उसका -----------
सब पे है फ़र्ज़, उसको समझाना |
उसको फिर से, करीबतर लाना ||
जुर्म सब, उसके हिस्से मत लाना |
दर्द जिसका -------------
ऐ खुदा, मुझ पे भी कर्म कर दे |
पास मेरे, मेरा सनम कर दे ||
पाना चाहता हूँ, न कि ठुकराना |
दर्द मेरा, किसी ने, न जाना |
मुझको मुजरिम ---------

Tuesday, July 26, 2011

शोर-ए-दिल


यह चक्कर क्या है, कि चक्कर समय का |
चला रहता है, यह थमता नहीं है ||

बुढापा इस कदर, हावी हुआ है |
जो पच जाता था, अब पचता नहीं है ||

मेरे ज़ख्मों पे, मरहम मत लगाओ |
अब इससे भी तो, कुछ बनता नहीं है ||

बहुत मांगीं दुआएँ, थक गया हूँ |
दुआओं में असर, लगता नहीं है ||

वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||

हमें लगता था, कि वह हस रहा है |
अस्ल मैं जो कभी, हँसता नहीं है ||

हुआ करती थी इक, बस्ती यहाँ पर |
कोई जिसका निशाँ, मिलता नहीं है ||

शोर-ए-दिल

बन्दा हूँ, भगवान नहीं हूँ |
पत्थर का इंसान नहीं हूँ ||

वक़्त के साथ, बदल सकता हूँ |
कोई वेद-पुरान नहीं हूँ ||

मैं भी गलती कर सकता हूँ |
धर्म नहीं हूँ, ज्ञान नहीं हूँ ||

हर्फ़ हूँ मैं, मिट जाने वाला |
गीता नहीं, कुरान नहीं हूँ ||

बुरा लगे जो, आँख किसी को |
ऐसा कोई, निशान नहीं हूँ ||

सीख रहा हूँ, रस्में-ज़माना |
इतना भी, अनजान नहीं हूँ ||

अपने से मत बेहतर समझो |
'शशि' हूँ ,आसमान नहीं हूँ ||

शोर-ए-दिल


तिनका हूँ, शहतीर नहीं हूँ | 
ज़िन्दां हूँ, तस्वीर नहीं हूँ ||

टूट रहा हूँ, धीरे-धीरे |
मैं पुख्ता, तामीर नहीं हूँ ||

हैरत से, मत देखो मुझको |
घायल हूँ मैं, तीर नहीं हूँ ||

ख्वाब किसी का, हूँ मैं शायद |
ख़्वाबों की, ताबीर नहीं हूँ ||

मेरा होना, है सच्चाई |
पानी पर, तहरीर नहीं हूँ ||

कतरे का भी, इक हिस्सा हूँ |
कल-कल करता, नीर नहीं हूँ ||

शायद मरहम, नहीं हूँ लेकिन |
चोट नहीं हूँ, पीर नहीं हूँ ||

'शशि' हमेशा, है यह कहता |
कर्म हूँ मैं, तकदीर नहीं हूँ ||