Saturday, July 2, 2011

शोर-ए-दिल

मैखाना है मैखाना, मस्जिद है न मदरसा |
मैखाने की फितरत है, वीरान नहीं होता || 
मैखाने में हर लम्हा, इक शमा मचलती है |
जिसे देख के जलता भी, इंसान नहीं रोता ||
जो साँस की डोरी है, न जाने कहाँ टूटे |
हर शख्स को पर इसका, इम्कान नहीं होता ||
जिनको सब दे डाला, अपने ही वो सारे थे |
अपनों पे सुना है की, एहसान नहीं होता ||

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