Wednesday, August 17, 2011

हमारा देश


 स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
इक तिरंगा ही सभी का, मन-पसंद परिवेश है ||
भिन्न-भिन्न हैं प्रांत इसमें, भिन्न-भिन्न इसमें धर्म |
अनेकता मैं एकता का, जग को ये सन्देश है || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
शान्ति का दूत जग मैं, पंचशील इसका नियम | 
इसका जो संविधान है,सर्व-धर्म निरपेक्ष है || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
 सुबहें इसकी हैं सुहानीं, इसकी रातें हैं रंगीन |
जितने मौसम, मन लुभाने, इसके सब दरवेश हैं || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है |
इसकी अलग पहचान है, जग में निराली शान है |
'मेरा भारत महान है, पलने न दे जो द्वेष है || स्वर्ग सम है, भू ज़हाँ की, वो हमारा देश है | 
    

Sunday, August 14, 2011

पन्द्रह अगस्त

माना त्यौहार भारत के, सब मस्त हैं |
सबसे प्यारा लगे, पन्द्रह अगस्त है ||
इस पर्व की, अनोखी ही पहचान है |
हर तरफ गूँजता, राष्ट्रीय गान है |
भारतीय करते अपने पे, अभिमान हैं ||
इसकी शोभा बढायें, जो सिद्धहस्त हैं || सबसे प्यारा लगे, पन्द्रह अगस्त है ||
इक ख़ुशी की लहर,बन के आता है यह |   
सबके मस्तिष्क पर, छा ही जाता है यह ||
हमको पाके सजग, मुस्कुराता है यह |
इसकी रक्षा को तत्पर, सब सशक्त हैं || सबसे प्यारा लगे, पन्द्रह अगस्त है ||
इसकी खातिर हुए, जितने कुर्बान हैं |
उनकी इतिहास मैं, अपनी ही शान है || 
जो आज़ादी की रक्षा, का दें ज्ञान हैं |  
'शशि' उनके लिए, आज नत-मस्त है |

Tuesday, August 9, 2011

soofi

सबकी बिगड़ी, सँवार देती है |
सबको माँ जैसा, प्यार देती है ||
 
माँगने की तरह तो, मांगो तुम |
माँ मुरादें, हज़ार देती है ||
मांग कर पा लिया, तो कहता हूँ |
माँ तो भर सब, भंडार देती है || 
जो फंसा हो, भंवर के, चक्कर में |
माँ पुकारे, माँ तार देती है || 
माँ को मोहना, भी कोई मुश्किल है |
सर झुका, माँ दुलार, देती है ||
माँ की ममता, का मोल, क्या दे 'शशि' |
माँ तो कर, जाँ निसार देती है || 
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दरींचा बे-सदा कोई नहीं है ;- गुलाम अली 

तुम्हारे दर सा कोई, दर नहीं है |
कहीं भी और, झुकता सर नहीं है ||
सुकूँ मिलता है जो, दिल को यहाँ पर |
बराबर उसके, कोई ज़र नहीं है ||
ठिकाना कर लिया, दर पर तुम्हारे |
बदलते क्यूँ तेरे, तेवर नहीं हैं ||
जी तेरे नाम का, ले-ले सहारा |
वो इस दुनियाँ को, समझे घर नहीं है ||
जिसे शक्ति ने शक्ति, बख्श दी हो |
उसे लगता 'शशि' कोई, डर नहीं है ||

Sunday, August 7, 2011

walwale




उसको, मुजरिम हर-एक ने जाना |
दर्द उसका, गया न पहचाना || 
उसके जीने का, जो सहारा था |
उसने ही, कर लिया किनारा था ||
उसको आया नहीं, मन पाना |
दर्द उसका -------------
उसका हमदम हुआ, जुदा उससे |
बेवजह ही हुआ, खफा उससे ||
आज भी जिसका, है वो दीवाना |
दर्द उसका -----------
सब पे है फ़र्ज़, उसको समझाना |
उसको फिर से, करीबतर लाना ||
जुर्म सब, उसके हिस्से मत लाना |
दर्द जिसका -------------
ऐ खुदा, मुझ पे भी कर्म कर दे |
पास मेरे, मेरा सनम कर दे ||
पाना चाहता हूँ, न कि ठुकराना |
दर्द मेरा, किसी ने, न जाना |
मुझको मुजरिम ---------