Wednesday, April 27, 2011

वलवले

बनी, मुश्किल बहुत, इन्सान पे है |
भरोसा कर चुका, भगवान पे है ||
कर्म करने से, है वो हिचकिचाता |
शुब्हा करता, खुदा की शान पे है ||
यकीं अपने पे भी, करता नहीं है | 
लगीं अब तोहमतें, ईमान पे है ||
ज़मीं  दोज़ख से भी, बदतर बना दी |
लगा दी आँख अब, असमान पे है ||
'शशि' तू बे-वज़ह, क्यूँ है परेशाँ |
फ़िदा गीता के, तू फरमान पे है || 

Saturday, April 23, 2011

शोर-ए-दिल

फलक को हम, ज़मीं कहते, ज़मीं को, आसमाँ कहते |
अगर इक दुसरे से ये, बदल कर के मकाँ रहते ||
अगर पानी पे चल पाना, कहीं मुमकिन यहाँ  होता | 
तो शायद कम ही कदमों के, बचे बाकी निशाँ रहते ||
अगर हम, ज़िन्दगी और मौत को, काबू में कर लेते |
 यकीनन, न किताबों में, लफ्ज़ फानी-फ़ना रहते ||
शुक्र है की, खुदा खुद , आदमी बन कर, नहीं रहता |
हम अपने  से, बशर को ही, भला क्यूँ कर, खुदा कहते || 
'शशि' शेयरों में, कह लेते हो, तुम भी चाँद, चेहरों को |
नज़र को किस तरह बिजली, ज़ुल्फ़ को तुम घटा कहते ||

Sunday, April 10, 2011

वलवले, एक भेंट;- सौ बार जानम लेंगे की तर्ज़ या होंठो से छू लो तुम की तर्ज़ पर गाया जा सकता है ;-

एक फ़रियाद, माँ के दरबार में ;-
इक बार चले आओ, अब और न तडपाओ |
दर्शन ज़रा दिखलाओ, फ़रियाद न ठुकराओ ||
रस्ता तेरा ताकता हूँ, सोता हूँ न जगता हूँ |
दिन रात तड़पता हूँ, दर्शन को तरसता हूँ ||
दर्शन दिखला जाओ, अब और न..............
इंसान बेचारा हूँ, तकदीर का मारा हूँ |
मैं दास तुम्हारा हूँ, संसार से हारा हूँ ||
करूणा दिखला जाओ, अब और न .............
तेरी शान निराली है, झोली मेरी खाली है |
नादान रहा बरसों, अब होश संभाली है ||
दामन मेरा भर जाओ, अब और न ...........
'शशि; शीश झुकाता है, आवाज़ लगाता है |
महिमा तेरी गाता है, लोगों को सुनाता है ||
आ जाओ, अब आ जाओ, अब और न ........  

Saturday, April 9, 2011

वलवले

गमें दौराँ में, जीने की, आरजू लेकर |
कहाँ-कहाँ न गए, शोर-ए-दिल की बू लेकर ||
था जिन पे नाज़, सहारा बनेंगे, मुश्किल में |
बहुत निराश हुए, उनसे, रूबरू होकर ||
मिला न कोई, खरीदार, अपनी हस्ती का |
किया ज़मीर को ज़ख़्मी है, आबरू खोकर ||
'शशि' न सीख, ज़माने से, बेवफा होना |
नहीं मिलेगा सुकूँ, उससा हू-बहू होकर ||  

Wednesday, April 6, 2011

वलवले

लो वहीँ आ गए, थे जहाँ से चले |
पंछियों की तरह, शाम जब है ढले ||
लोग अच्छे-बुरे, रास्ते में मिले | 
नादाँ लड़ते थे, दानाँ गले से मिले ||
पास अपने हैं यादों के बस काफिले |
रोने-हसने के चलते रहे सिलसिले || 
भीड़ रिश्तों की, हमने बना ली भले |
साथ शायद ही कोई, हमारे चले ||
है ज़मीन पे 'शशि', आसमाँ के तले |  
धुप से खिल उठे, चाँदनी से जले ||   

वलवले

कोई ऐसा मिला ही नहीं |  जिसको कोई गिला ही नहीं ||
दूरियां हैं , दिलों में मगर | दरम्याँ, फासला ही नहीं ||  
जब जो होना था होकर रहा | हमसे कुछ भी टला ही नहीं ||
आग नफरत की जलती रही | प्यार उसमे, जला ही नहीं ||
सबको तकदीर से है गिला | क्यूँ 'शशि' से मिला ही नहीं ||

Tuesday, April 5, 2011

वलवले

कद से किरदार की पहचान कहाँ होती है |
झूठ में सच सी, निहाँ शान कहाँ होती है||
जिनकी तामीर में, खुदगर्जी हो मक्कारी हो |
ऐसे रिश्तों में भला जान कहाँ होती है ||

वलवले

मैंने ख़्वाबों में ख्वाब देखे हैं |
बहुत ही लाजवाब देखे हैं ||
सिर्फ तारे नहीं दिखे दिन में |
रात में आफ़ताब देखे हैं ||

वलवले

अगर इतना ही कहना था, अज़नबी फिर से बन जाएँ |
बिछुड़ कर तुमसे जीने से, तो बहतर है, की मर जाएँ ||
तुम्हारी आँख में कल तक, हमारे ख्वाब बसते थे |
हमारे नाम की तस्बीह, तुम दिन-रात जाप्ते थे ||
अचानक हो गया है क्या, ज़रा हमको भी समझाएं | बिछुड़ कर तुमसे जीने से
सजा-ए-मौत से  बढकर, सजा-ए-ज़िन्दगी दे दी |
ज़माने को दिखाने के लिए, शर्मिंदगी दे दी ||
संभलना चाहते तो हैं, मगर शायद संभल पायें | बिछुड़ कर तुमसे जीने से 
तुम्हारा फैसला है, हम, भला क्यूँ बरतरफ़ कर दें |
हमारी खुशनसीबी है, की हम खुद को सर्फ़ कर दें || 
नहीं कहता 'शशि' की,फैसले को, फिर से दोहरायें | बिछुड़ कर तुमसे जीने से 

वलवले

जो होता है, अच्छा होता | दिल को यह समझा कर देखो ||
हैरत में सब पड़ जाओगे | थोडा सा ग़म खा कर देखो ||
सुर में खुद ही आ जाओगे | दिल से कुछ भी गा कर देखो ||
रिश्ते, जीने को, कहते हैं | रिश्ते नए बना कर देखो ||
रिश्तों को, बिलकुल मत परखो |नुस्खा यह आजमा कर देखो ||
हर दिन ही दीवाली होगी | खुशियाँ जरा लुटा कर देखो || 
तारीखी न कहीं मिलेगी | खुद को, ख़ुद बहला कर देखो ||
राहत सी महसूस करोगे |तन्हाई में जाकर देखो ||
तपती धुप से बच जाओगे | ख़ुद को छावँ बना कर देखो ||
मंजिल पास ही आ जायेगी | पहला कदम उठा कर देखो ||
मायूसी, ना हाथ, लगेगी | पास 'शशि' के आ कर देखो  ||

Monday, April 4, 2011

वलवले

जी रहा, हर आदमी है, बस इसी उम्मीद पर |
बंदगी से, एक दिन, बंदा, खुदा हो जाएगा ||
चच्चा ग़ालिब ने तुज़ुरबा, है किया कुछ यूँ बयाँ |
दर्द जब हद से बढेगा, खुद दवा हो जाएगा ||
टॉस करके फैसला करना,अगर्चा शौक है |
शौक यह ही देखना, इक दिन  जुआ हो जाएगा ||  

वलवले

जब भी वादा वफ़ा नहीं होता | क्यूँ तू, मुझसे खफा नहीं होता ||
कैसी मुश्किल हो, कैसा मौका हो | तू कभी होश क्यूँ नहीं खोता ||
बात हैरान करने वाली है | कम तेरा, होंसला, नहीं होता ||
क्यूँ  समझते हो, एक सा सबको | एक सा दूसरा नहीं होता || 
बख्श देते हो हर किसी की खता | ऐब यह भी, खरा नहीं होता || 
नक्ल करते हो, क्यूँ फरिश्तों की | आदमी देवता नहीं होता ||
'शशि' तुम क्यूँ, गिला नहीं करते | बोझ दिल पर, भला नहीं होता ||

Sunday, April 3, 2011

वलवले

मुझे तनहाइयाँ, बहला रहीं हैं |
मुझे यह छेड़ कर, इठला रहीं हैं || 
शरारत ही, इसे तो, मैं कहूँगा |
ख्यालों को मेरे उलझा रहीं हैं ||

वलवले

कुनबा है इक, ज़हान यह, परवरदिगार का |
मतलब, बदल दिया है, ज़माने ने प्यार का ||
छोटा करे लिहाज़, बड़ा प्यार दे उसे |
ऐसे में ज़िक्र, हो कहाँ ,फिर जीत-हार का || 
घर एक है, ज़मीन यह, छत जिसकी आसमान |
शैतान की ईजाद है, उठना दीवार का ||
गर आज भी, ईमान की, इंसान मान ले |
मौसम मिलेगा एक यहाँ, बस बहार का ||
शायद ही, तेरे ख्वाब की, ताबीर हो 'शशि' |
तू इंतज़ार कर, सिर्फ, दीदार-ए-यार का ||   

Friday, April 1, 2011

वलवले

न जाने ज़िन्दगी में क्यूँ , खला मालूम होता है |
जो हमदर्दी जता दे, वो भला मालूम होता है ||
खता, पहले जो कम होती थी, बारम्बार होती है |
जिसे काफ़िर समझते हैं, वही मासूम होता है ||
अक्ल का इन दिनों, यह हाल है,जिस लफ्ज़ के मायने |
हम उनसे पूछते हैं, खुद ही वो मफ़हूम होता है ||     मायने 
फक्त ज़ालिम नहीं ज़ालिम,है शातिर भी, सयाना भी |
बजाहिर जब उसे देखो, बना मज़लूम होता है ||
'शशि' को जब भी देखा है, तन-ए- तन्हा ही देखा है |
वो कहता है की, उसके साथ इक, हज्ज़ुम होता है ||