ये कैसी, अनहोनी
होई |
दिल रोया, पर आँख
ना रोई ||
चाहूँ लाख, जगाना
उसको |
कम करे, तदबीर ना
कोई ||
सब बेचारा, कह
देते हैं |
जो लिखा है , होगा
सोई ||
याद नहीं है, क्या
बोया था |
दिल की बस्ती,
बंज़र होई ||
अँधेरा है, कैसे
ढूँढूँ |
यारो, अपनी किस्मत
खोई ||
तन्हाई अच्छी,
लगती है |
तन्हाई सा, मीत ना
कोई ||
बन्ज़ारों सा, घूम
रहा हूँ |
अपना पक्का, ठौर,
ना कोई ||
कब अपने से, मिल
पाऊँगा |
कब मेरा भी, होगा
कोई ||
अब तक उससे, मिल
ना पाया |
जिसकी खातिर,
सुध-बुध खोई ||
वक़्त ज़ख्म दे,
वक़्त ही मरहम |
वक़्त रखे, बीमार
ना कोई ||
सुन रक्खा है,
मीठा बोलो |
लफ़्ज़ों सी, तलवार
ना कोई ||
जैसे रोता, ‘शशि’
को देखा |
कभी, कहीं, बरसात
ना रोई ||
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