Tuesday, August 9, 2011

soofi

सबकी बिगड़ी, सँवार देती है |
सबको माँ जैसा, प्यार देती है ||
 
माँगने की तरह तो, मांगो तुम |
माँ मुरादें, हज़ार देती है ||
मांग कर पा लिया, तो कहता हूँ |
माँ तो भर सब, भंडार देती है || 
जो फंसा हो, भंवर के, चक्कर में |
माँ पुकारे, माँ तार देती है || 
माँ को मोहना, भी कोई मुश्किल है |
सर झुका, माँ दुलार, देती है ||
माँ की ममता, का मोल, क्या दे 'शशि' |
माँ तो कर, जाँ निसार देती है || 
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दरींचा बे-सदा कोई नहीं है ;- गुलाम अली 

तुम्हारे दर सा कोई, दर नहीं है |
कहीं भी और, झुकता सर नहीं है ||
सुकूँ मिलता है जो, दिल को यहाँ पर |
बराबर उसके, कोई ज़र नहीं है ||
ठिकाना कर लिया, दर पर तुम्हारे |
बदलते क्यूँ तेरे, तेवर नहीं हैं ||
जी तेरे नाम का, ले-ले सहारा |
वो इस दुनियाँ को, समझे घर नहीं है ||
जिसे शक्ति ने शक्ति, बख्श दी हो |
उसे लगता 'शशि' कोई, डर नहीं है ||

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