Friday, September 9, 2011

मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ



मैं कैसे कहूँ की मैं क्या चाहता हूँ |
सिर्फ आदमी मैं बना चाहता हूँ ||
ज़माने को देना बता चाहता हूँ |  
ज़मीं को मैं ज़न्नत-नुमाँ चाहता हूँ ||  मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
तवक्को  से बहतर ज़हाँ चाहता हूँ |
निगाहों में, आब-ऐ-हया चाहता हूँ ||
हर इक दिल में, खौफ-ऐ-खुदा चाहता हूँ |
अमन की मैं हर-सू फिजा चाहता हूँ || मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
न उल्फत का अपनी सिला चाहता हूँ |
न करना ज़ुबां से, गिला चाहता हूँ ||
मैं हर दिल को, गुल सा, खिला चाहता हूँ |
मैं खुद को, खुदा से मिला चाहता हूँ ||मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
न नफरत का नाम-ओ-निशाँ चाहता हूँ |
ज़माने का रब्ब से, भला चाहता हूँ ||
मैं हर लब पे, हर पल, दुआ चाहता हूँ |
खुदा न सही, नाखुदा चाहता हूँ ||मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
किसी से न होना, खफा चाहता हूँ |
हर इक दिल में रहना बसा चाहता हूँ ||
खुदा से कहूँ , शुक्रिया, चाहता हूँ |
मैं रस्ते का बनना, दिया चाहता हूँ ||  मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ 

2 comments:

  1. Waah Sir.. Kya khoob likha hai aapne.. Bahut sundar... Aabhar..

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  2. अपनी ख्वाहिशों को बखूबी लफ्ज़ दिये हैं आपने.

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