सुन्दर छवि तुम्हारी नैनों मे बस गई है |
बिरह की फाँस कब की, इस दिल मे फस गई है ||
जब तक था दूर तुझसे, जब तक मिला नही था |
तुझसे न थी मुहब्बत, तुझसे गिला नही था ||
दर्शन तेरे को मेरी,यह नज़र तरस गई है || सुन्दर छवि तुम्हारी नैनों मे बस गई है |
मिलना है कैसे मुमकिन, इतना ज़रा बता दे |
रह्ता है जिस जगह तू, उसका पता बता दे ||
तेरी प्रीत बन के नागिन, मुझे कब की डस गई है || सुन्दर छवि तुम्हारी नैनों मे बस गई है |
मुझे हो गया यकीं है, की तेरी दया, दवा है |
इस बात की खुशी है, की तू मुझपे मह्र्बां है ||
यूं लगे तुम्हारी रहमत, मुझ पेर बरस गई है || सुन्दर छवि तुम्हारी नैनों मे बस गई है |
मुझे हो गया यकीं है, की तेरी दया, दवा है |
ReplyDeleteइस बात की खुशी है, की तू मुझपे मह्र्बां है ||
वाह! बहुत सुन्दर भक्ति गीत है.
अनुपम बोल दिल को छूते हैं.
मेरे ब्लॉग पर आप आये इसके लिए बहु बहुत आभार,शशि जी.