Friday, December 10, 2010

वलवले

बहुत मायूस हूँ और थक चुका  हूँ !गिरने वाला हूँ शायद पाक चुका  हूँ !!
बहुत देखी है,  मैंने राह तेरी ! कलेजे पर  मैं,  पत्थर रख चुका  हूँ !!
नहीं बस में मेरे तुझको भुलाना ! मज़ा उल्फत का तेरी चख चुका हूँ !!
कहूँ क्या हाल है, तुझसे  बिछुड़ के ! मैं अपने ज़ख्म सारे ढक चुका हूँ !!
न जाने क्यूँ ये साँसे चल रहीं हैं ! जहाँ को अपनी आँखों तक चुका हूँ !!
'शशि' की आह निकली बे-असर ही ! नमाजें की हैं, रोज़े रख चुका हूँ !!

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