Friday, March 25, 2011

वलवले

गमें दौराँ से घबराता नहीं हूँ |
कभी कोई कमी पाता नहीं हूँ ||
मेरा ईमान ही इंसानियत है |
किसी के दर पे मैं जाता नहीं हूँ ||
यह माना तंग-दस्ती है मुक्कदर |
मैं दामन फिर भी फैलाता नहीं हूँ ||
मैं इतराता हूँ अक्सर आईने में |
किये अपने पे पछताता नहीं हूँ ||
'शशि' को परखने वालो समझ लो |
कोई भी बात दोहराता नहीं हूँ || 

Thursday, March 24, 2011

वलवले

सबने किया शारीर को, प्यार, दुलार, श्रृंगार |
उसमे, बस्ती आत्मा , की न सुनी पुकार ||

आना-जाना साँस का, जीवन का सन्देश |
यह तन, सुन्दर आत्मा, का अस्ली परिवेश ||  

चमचा

जब से चमचा चलन में आया है |
 कुछ नयापन, वतन में आया है ||
बे-हयाई व बेईमानी को, होश्यारी में जब मिलाया है |
तब कहीं जा के आज का इन्सां, खुद को चमचा कहाने पाया है ||
खूब नुस्खा, यह हाथ आया है, हमने चमचों से दिल लगाया है |
रंग लाई है, उल्फत-ए-चमचा ,हम पे अब,बरकतों का साया है ||
जिसकी ख़्वाबों में न तवक्को थी, होश में, हाथ सब वो आया है |
मात दी है, चिराग के जिन को,दाँव,चमचे ने वो लगाया है ||
आँख वालों को, अक्ल का अँधा, आज चमचों ने ही बनाया है |
मूर्खों की इजाद है चमचा, आज-कल जिसपे, हुस्न आया है||
जब से मशहूर हो गया चमचा, हर कोई उसका चाचा. ताया है |
देख कर रह गया 'शशि' हैराँ,चमचा क्या खूब, चमचमाया  है || 
     

चमचा

जब से चमचा चलन में आया है |
 कुछ नयापन सा वतन में आया है ||
बे-हयाई व बेईमानी को, होश्यारी में जब मिलाया है |
तब कहीं जा के आज का इन्सां, खुद को चमचा कहाने पाया है ||
खूब नुसखा यह हाथ आया है, हमने चमचों से दिल लगाया है |
रंग लाई है, उल्फत-ए-चमचा ,हम पे अब,बरकतों का साया है ||
जिसकी ख़्वाबों में न तवक्को थी, होश में, हाथ सब वो आया है |
मात दी है, चिराग के जिन को,डोमव चमचे ने वो लगाया है ||
आँख वालों को, अक्ल का अँधा, आज चमचों ने ही बनाया है |
मूर्खों की इजाद है चमचा, आज-कल जिसपे, हसन आया है||
जब से मशहूर हो गया चमचा, हर कोई उसका चाचा. ताया है |
देख कर रह गया 'शशि' हैराँ,चमचा क्या खूब, चमचमाया  है || 
     

Monday, March 21, 2011

वलवले

नारी तुम कैसे अबला हो | तुम ही तो जग में सबला हो ||
नयन तेरे जो जल बरसाए | वो पिघले जो न पिघला हो ||
तेरे नाटक बड़े निराले |छलियों को भी जिसने छाला हो ||
धीमी सुर और तीखे बोल |जग में सुन्दर एक बला हो ||
नारी तेरा मन वो मन है | द्वेष का जिसमे दीप जला हो ||
न ममता न त्याग की मूरत | आस्तीन में सांप पला हो ||
शक्ति का ही रूप है नारी |'शशि' गर उसका मन उजला हो ||

वलवले

आईने में बस रहे, भगवान हैं |
देखने वाली, नज़र नादान है ||

यूँ करैं महसूस , मौसम का असर |
जैसे बचपन से, बुढापे का सफ़र ||
वक़्त देता है बदल, दोनों को पर |
कब बदलते हैं, नहीं चलती खबर || 

Saturday, March 19, 2011

फाल्गुन की पुरवाई बोली | आई होली आयी होली ||
रूठे हुओं को रंग लगा कर| फिर से बन जाओ हमजोली ||
खुशियाँ बिखरीं जब अपनों ने |रंगों की पिचकारी खोली ||
रंगों की रंगोली बोली |आई होली, आई होली || 

Friday, March 18, 2011

वलवले

जीने का लालच आ गया, फिर से दिमाग में |
पंचम कोई लगा गया, विरहा  के राग में ||
कट रही थी ज़िन्दगी,  बनके सजा, खता बिना |
इसको हसीं  बना दिया, सावन ने, फाग ने ||   

Thursday, March 17, 2011

वलवले

बाद मुद्दत के,अचानक जब मिले !
लाझ चाहा, लब न थे लेकिन हिले !!
दो दिलों की, गुफ्तगू  होने लगी !
आँखों- आँखों ने, किये शिकवे-गिले !! 
देखने वाला, था इक, मंजर बना !
दरम्याँ थे, दो दश्क के फासले !!
किस कदर गुजरी, नहीं पूछा गया ! 
क्या हुआ, यादों के जो थे काफिले !!
साफ उनसे क्यूँ नहीं कहते 'शशि' !
थे जहाँ बिछड़े, वहीँ पर है मिले !!    
क्यूँ जलाते हो दिल, ज़माने का !
ऐब अच्छा नहीं, सताने का !!
मुझसे मिलना, कहीं न पड़ जाये ! 
पता लिख लो, गरीब खाने का !!

Tuesday, March 15, 2011

वलवले

जिसके हक़ में मैं सदा, रब्ब से दुआ करता रहा !
वो हमेशा, मुझ पे जाने क्यूँ , शुब्हा करता रहा !!
खेल है तकदीर का, यह अब समझ आया मुझे !
दोस्ती के नाम पर ही, वो दगा  करता  रहा !!
हम-कदम चलते हुए भी, हम-नफस न बन सका !
 मैं भला करता रहा, वो बुरा करता रहा !! 
 जिसकी खुशियों के लिए, मैं मन्नते माना किया !
वो मेरे दिल को हमेशा ही, धुआँ करता रहा !!
मैं इशारों से उसे, हर बात कह देता भी था ! 
वो न जाने क्यूँ 'शशि' को, अनसुना करता रहा !!  


    
   

Monday, March 14, 2011

शोरे- दिल

नारी में  गर जीभ  न होती ! दुनिया बे-तरतीब न होती !!
याद करो, आदि से अब तक ! नारी जब भी, कुछ बोली है !!
धरती पे कुछ अजाब घटा है ! खून की जग, खेला होली है !! 
कोई जंग नसीब न होती ! नारी में  गर जीभ  न होती ! दुनिया बे-तरतीब न होती !!
सतयुग में, रावण जैसे को ! वाक-बाण सीता ने मारे !
द्वापर में भी, बीच सभा के ! पंचाली, दुर्योधन ललकारे !!
सूरत कोई अजीब न होती !  नारी में  गर जीभ  न होती ! दुनिया बे-तरतीब न होती !!
( भगवान् की कोई भूल ब्याँ करने की छोटी सी कोशिश की है ! आप अपनी राय दे सकते हैं !  )
होली के रंग तमाम, तुम्हें कर श्रृंगार दें !
होली पे दिल से, हम ये दुआ बार-बार दें !! 

Wednesday, March 9, 2011

वलवले

निकाह नेकी, तलाक लानत है !
ज़िन्दगी प्यार की, अमाबत है !!
तर्क-ए-ताल्लुक के बाद, शादी क्यूँ !
शादी बेवा से कुछ, दयानत है !!

प्यार शादी से पहले धोखा  है !
बाद शादी के किसने रोका है !!
यूँ ही बेकार न गँवा देना !
ज़िन्दगी इक सुनहरी मौका है !!   

Saturday, March 5, 2011

वलवले

नेकियाँ करना, तुम्हारा काम  है !
ऐ खुदा, मुझको बदी  से बाज़ रख !!

हर एक दिन की, शुरुआत इस कसम से करो !
भला, हुआ तो करेंगे, बुरा, करेंगे नहीं !! 

जिस पे मुझको कभी शुब्हा न रहा ! 
वो कभी मेरा, राजदां  न रहा !!
उस पर इतना यकीन था कामिल !
दिल का हर मामला उसी से कहा !!

वलवले

नेकियाँ करना, तुम्हारा कम है !
ऐ खुदा, मुझको बड़ी से बाज़ रख !!

हर एक दिन की, शुरुआत इस कसम से करो !
भला, हुआ तो करेंगे, बुरा, करेंगे नहीं !! 

जिस पे मुझको कभी शुब्हा न रहा ! 
वो कभी मेरा, राजदां  न रहा !!
उस पर इतना यकीन था कामिल !
दिल का हर मामला उसी से कहा !!

Thursday, March 3, 2011

वलवले

अनोखा इक तजुर्बा कर रहा हूँ ! मगर मैं दिल ही दिल में डर रहा हूँ !!
किये अपने पे पछताना पड़े ना  ! बिछुड़ अपनो से हुई जाना पड़े ना !!
मैं रुसवाई को शायद सह सकूं ना ! मैं हाल-ए-दिल भी शायद कह सकूं ना !!
मेरे मौला कभी वो दिन ना आये ! मेरा ईमान हो छिन्न -भिन्न ना जाए !!
मेरी मुश्किल को तुम आसान करना ! ना दिल टूटे मेरा, एहसान करना !!
मैं ज़ज्बों पे भरोसा कर रहा हूँ ! मैं बाहों में समंदर भर रहा हूँ !!  

Tuesday, March 1, 2011

जवानी जा चुकी, जाने कहाँ है !
तम्मानाएँ अभी तक भी जवाँ हैं !!
हाँ सब-कुछ समझ आने लगा है !
जो चाहो वो नहीं मिलता यहाँ है !!
खुदा का हमशक्ल बेशक है बंदा !
खुदा हर दिल में करता घर कहाँ है !!
जो सब में है बसा जाने वो इक दिन !
जिस्म को छोड़ के जाता कहाँ है !!