जिसके हक़ में मैं सदा, रब्ब से दुआ करता रहा !
वो हमेशा, मुझ पे जाने क्यूँ , शुब्हा करता रहा !!
खेल है तकदीर का, यह अब समझ आया मुझे !
दोस्ती के नाम पर ही, वो दगा करता रहा !!
हम-कदम चलते हुए भी, हम-नफस न बन सका !
मैं भला करता रहा, वो बुरा करता रहा !!
जिसकी खुशियों के लिए, मैं मन्नते माना किया !
वो मेरे दिल को हमेशा ही, धुआँ करता रहा !!
मैं इशारों से उसे, हर बात कह देता भी था !
वो न जाने क्यूँ 'शशि' को, अनसुना करता रहा !!
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