लो वहीँ आ गए, थे जहाँ से चले |
पंछियों की तरह, शाम जब है ढले ||
लोग अच्छे-बुरे, रास्ते में मिले |
नादाँ लड़ते थे, दानाँ गले से मिले ||
पास अपने हैं यादों के बस काफिले |
रोने-हसने के चलते रहे सिलसिले ||
भीड़ रिश्तों की, हमने बना ली भले |
साथ शायद ही कोई, हमारे चले ||
है ज़मीन पे 'शशि', आसमाँ के तले |
धुप से खिल उठे, चाँदनी से जले ||
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