बनी, मुश्किल बहुत, इन्सान पे है |
भरोसा कर चुका, भगवान पे है ||
कर्म करने से, है वो हिचकिचाता |
शुब्हा करता, खुदा की शान पे है ||
यकीं अपने पे भी, करता नहीं है |
लगीं अब तोहमतें, ईमान पे है ||
ज़मीं दोज़ख से भी, बदतर बना दी |
लगा दी आँख अब, असमान पे है ||
'शशि' तू बे-वज़ह, क्यूँ है परेशाँ |
फ़िदा गीता के, तू फरमान पे है ||
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