Tuesday, July 26, 2011

gazal

ख़ुशी से कौन, लुटने के लिए, बाज़ार आता है |
यकीं कर लो जो आता है, वो हो लाचार आता है ||
खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियाँ लुटा रही हूँ |
बिजली गिरी थी मुझ पे, सो जगमगा रही हूँ ||
बचपन से आजतक का, हर पल है यद् मुझको |   
अपनों ने ही किया है, लोगो, नाशाद मुझको ||
सच मानो या न मानो, मैं सच सुना रही हूँ | खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियाँ लुटा रही हूँ ||
बचपन न मुझ पे आया, न सुनी कोई कहानी |
वहशत, हवास ने मुझको,सौगात दी जवानी  ||
बूढी हूँ दिल से लेकिन, मैं जवाँ कहा रही हूँ | खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियां लुटा रही हूँ ||
कोई पासबाँ नहीं है, कोई महर्बां नहीं है |
जो मेरी पुकार सुन ले, कोई नौजवाँ नहीं है ||
छले छुपा के दिल के, मैं मुस्करा रही हूँ |  खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियां लुटा रही हूँ ||  

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