उन्हीं से उनके लिए, ख़त लिखा रहा है कोई ||
कहा गया न, जुबां से, जो रूबरू उनके |
बिठा के पास उन्हें, सब सुना रहा है कोई ||
वो पूछते भी हैं, उल्झा के, बातों-बातों में |
अदा से नाम उन्हीं का, बता रहा है कोई ||
हसद ज़बीं पे नुमायाँ है, दिल पे क्या जाने |
उन्हें यूँ खून के, आँसू रुला रहा है कोई ||
मिलेगा ख़त, तो वो, खुश होंगे या खफा होंगे |
नसीब अपना 'शशि', आजमा रहा है कोई ||
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