Saturday, January 15, 2011

वलवले

पानी बने और बह गए, आँखों से, जो थे ख्वाब !
जब, तल्खिये हयात से, दो-चार हो गये !!
मंजिल करीब आई तो, हालात यूँ बने !
मंजिल की और जाने से, लाचार हो गये !!

Monday, January 3, 2011

वलवले

कोई किसी का नहीं इंतज़ार करता है !
किसी के साथ कोई, कब ख़ुशी से मरता है !!
वो मुझसे दूर ही रहते हैं , पर गिला कैसा !
मेरा ही साया, मेरे साथ से भी डरता है !!
मुझे खबर है, उसे भी अजीब लगता है !
वफ़ा की राह से, कतरा के, जो गुजरता है !!
न जान उसको अनाड़ी, जो बहरे दुनियाँ में !
बड़े यकीं से, सहारे बिना उतरता है !!
ज़हाँ आग का दरिया है, जिस्म सोना है ! 
'शशि' जो इसमें, है तपता, वही निखरता है !!