Monday, November 29, 2010

शोर-ऐ-दिल

मैं लिखने के बहाने ढूँढता हूँ, मैं लफ्जों में खजाने ढूँढता  हूँ !
नहीं मुमकिन है जिनका लौट आना, मैं वो गुजरे ज़माने ढूँढता हूँ !!
दर्द से सब ही खौफ खाते हैं ! दर्द कब सब के हिस्से  आते हैं !!
दर्द हमदर्द से भी बह्हातर हैं ! दर्द ही हौंसले बढ़ाते हैं !!
रोने के बहाने मत ढूँढ़ो, कुछ हसने की तदबीर करो !
हाथों की लकीरें मत देखो, खुद किस्मत को तहरीर करो !!
धुप और छावँ मिलते देखे हैं ! शहर और गाँव मिलते देखे हैं !!
मेरी आँखों ने आप सच माने, हँस और काँव मिलते देखे हैं !!

Sunday, November 28, 2010

आते-आते बेवफा का, ज़िक्र लब पर रह गया !
मुझको कहना और कुछ था, और कुछ मैं कह गया !!
बेवफा निकला था मुंह से, मुंह मेरा ताकने लगे !
शर्म से आँखें झुका लीं, बज़्म से उठने लगे !!
मैंने बदली बात, रुख उनका बदल के रह गया !मुझको कहना और कुछ था, और कुछ मैं कह गया !
रूबरू उनके था मैं, और वो थे मेरे रूबरू !
शर्त थी आँखों ही आँखों, से करेंगे गुफ्तगू !!
आँख मिलते उनसे, मेरा दिल, धड़क के रह गया !मुझको कहना और कुछ था, और कुछ मैं कह गया !
उनको कहों के, खुश नहीं मैं, खुश हैं वो, लगता नहीं !
मेरी तरह उनको भी, शायद कोई जंचता नहीं !
था 'शशि' उफनता सागर, लहर बन के रह गया ! मुझको कहना और कुछ था, और कुछ मैं कह गया

Friday, November 26, 2010

शोर-ऐ-दिल

तिनका हूँ शहतीर नहीं हूँ ! जिंदा हूँ तस्वीर नहीं हूँ !!
टूट रहा हूँ, धीरे-धीरे ! मैं पुख्ता तामीर नहीं हूँ !!
हैरत से, मत देखो मुझको ! घायल हूँ मैं तीर नहीं हूँ !!
ख्वाब किसी का हूँ मैं शायद ! ख्वाबों की ताबीर नहीं हूँ !!
मेरा होना है, सच्चाई ! पानी पर तहरीर नहीं हूँ !!
कतरे का भी, इक हिस्सा हूँ ! कल-कल करता, नीर नहीं हूँ !!
शायद, मरहम नहीं हूँ लेकिन ! चोट नहीं हूँ, पीर नहीं हूँ !!
'शशी' हमेशा है यह कहता, कर्म हूँ मैं, तकदीर नहीं हूँ !!
khushi mili to muskura na sake,
gum mile to ansu baha na sake,
Is zindagi ka yahi raaz raha,
Jise chaha use pa na sake,
Aur itna chaha ki kabi bhula na sake..
Prof. Paras (Honey)

Thursday, November 25, 2010

मेरा भारत

स्वर्ग-सम है भू जहाँ की, वो हमारा देश है !
इक तिरंगा ही सभी का, मनपसन्द परिवेश है !!
भिन्न-भिन्न हैं, प्रान्त इसमें, भिन्न-भिन्न इसमें धर्म !
अनेकता में एकता का, जग को यह संदेश है !!
शांति का दूत जग में,पंचशील इसका नियम !
इसका जो संविधान है सर्व-धर्म निरपेक्ष है !!
सुबहें इसकी हैं सुहानी, इसकी रातें है रंगीन !
जितने मौसम मन-लुभाने, इसके सब दरवेश हैं !!
इसकी अलग, पहचान है, जग में निराली शान है !
'मेरा भारत महान ' है, पलने न दे, जो द्वेष है !!

Wednesday, November 24, 2010

शोर-ए-दिल

बाद मुद्दत के, अचानक जब मिले १
लाख चाहा, लब न थे, फिर भी हिले ११
दो दिलों की गुफ्तगू होने लगी १
आँखों-आँखों ने किये शिकवे-गिले ११
देखने वाला था इक मंजर बना १
दरम्याँ थे दो दश्क के फासले ११
किस कद्र गुजरी नहीं पूछा गया १
क्या हुआ, यादों के जो थे फासले ११
शोर-ऐ-दिल उनसे 'शशि' अब तो कहो १
थे जहाँ बिछड़े, वहीँ पर हैं मिले 11

Tuesday, November 23, 2010

शोर-ऐ-दिल

रिश्ते, जीने को कहते हैं ! रिश्ते नए बना कर देखो !!
अश्कों का, न स्वाद बदलता ! रो कर देखो, गा कर देखो !!
खुद को खुद, बहला कर देखो ! सोच के दीप जला कर देखो !!
हैरत में, सब पड़ जाओगे ! थोडा सा गम खा कर देखो !!
जो होता है, अच्छा होता !दिल को यह समझा कर देखो !!
रिश्तों को, बिल्कुल मत परखो ! नुस्खा यह अजमा कर देखो !!
तारीखी, न कहीं मिलेगी ! सोच के दीप जला कर देखो !!
तपती धुप से बच जाओगे ! खुद को छावँ बना कर देखो !!
हर दिन ही दिवाली होगी !खुशियाँ जरा लुटा कर देखो !!
राहत सी महसूस करोगे ! तन्हाई में जाकर देखो !!
मायूसी, न हाथ लगेगी !पास 'शशी' के आकर देखो !!  
 

Monday, November 22, 2010

शोर-ऐ-दिल

तडपत-तडपत कटी रैना, कोई उसको न जा कहना !
जिसकी है पहचान यह गहना, चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना !!
जब से उसका चेहरा देखा, अपने सर पर सेहरा देखा !
ऐसा ख्वाब सुनहरा देखा, दूभर जिसकी दूरी सहना !! चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना ......
जब से मेरे दिल में आई, बन बैठी मेरी परछाई !
राह नई जीवन ने पाई, झरने सीखें, जिससे बहना !!  चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना .......
जिसका मन है, पावन-गंगा, दया भाव ने, जिसको रंगा !
देख जिसे, मैं बना पतंगा, उसकी शान का, क्या है कहना !! चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना ..
शोर-ऐ-दिल 

Sunday, November 21, 2010

shoredil

खोजत-खोजत खो गए, जाने कितने लोग !
हरी खोजे जो आप में ,विरला ही कोई होग !!
अपना मरना भूल के, जग से कीनी प्रीत !
भूल गए इस कथन को, मन-जीते, जग-जात !!
भला न बेशक कीजिये, बुरा न करना भूल  !
जीवन में सुख-शांति, का यह मंतर मूल !!
एक बार तो भूल है, बार-बार है दोष !
माफ़ी पहली बार की, दोषों की सजा ठोस !!

shoredil

अपने ख्याल में, वो मुझे, मत दे गया ! सावन वो मेरी, आँख को, सौगात दे गया !!
एहसान कर गया है, या खैरात दे गया ! जिसकी सुबह नहीं, मुझे वो रात दे गया !!
मेरे आँखों के सावन से, तो अब सावन भी जलता है !
इन्हें बरसों बरसना है, यह कुछ अर्सा बरसता है !!
बहुत कम ही,फर्क पाया, मेरी नज़रों ने दोनों में !
यह इक रफ़्तार से बरसे, वो थम-थम के बरसता है !!
कभी सावन की इक बारिश, हंसी में उनसे मांगी थी !
मुकद्दर अब 'शशि' अक्सर, हंसी मेरी पे हंसता है !!

Saturday, November 20, 2010

Guru-Parw : Siri Guru Nanak Shobha

न-नुक्कर जिस रत्ता न किती, तेरा ही तेरा गया ! पासे सुट के वट्टे सारे, तेरां ही तेरां पाया !!
पुन्नियाँ नु अन्मुले मानक, नानक जन्म कमाया ! ऐसा चानन होया जग विच, हनेरा वि घबराया !!
बचपन दे विच, पचपन दे गुण, सब नु सोचीं पाया ! जिस उस्ताद तो पढने घल्ल्या, उस नू सबक सिखाया !!
बोली उस दी बानी बन गयी, एहना कुछ फ़रमाया !अपने विचों आप लब्ब्या, बाकि सब ठुकराया !!
मन जीते, जग जीत डा सिक्का, दुनिया ताई चलाया ! साचा-सौदा करना सौखा,कीता ते, सिखलाया !!
तेरा भाना मीठा लागे, जग उते फ़रमाया ! एक नूर ते सब जग उपजेया, अव्वल नूर उपाया !!
वसदे रहन ते, उजाडन दे विच, डाहडा फर्क दिखाया ! नूर अवलडा धर्म नाल सी, अर्शों चल के आया !!
ऐसे करतब किते जग ते, सुतियाँ ताई जगाया !अपने सर ते जरा न लीती, रब्ब दे लेखे लाया !!
चारों पासे चारों मौसम, रब्ब डा रूप विखाया !सदा लई उथे रौनक हो गई, जिस थां चरणी पाया !!
मंदे-कम्मी मंदा होसी,सब नू एह समझाया !चंग्याइयां नाल खाते भर लये, वेला नहीं खुन्जाया !!
नूर नहीं  सी  रब्ब दा, रब्ब सी, जिस भौं फेरा पाया !पापी तारे,पत्थर तारे, खुशियाँ नू उपजाया !!
नाम-खुमारी दे विच डुब के, अपना आप भुलाया ! चानन, चन्न दी चानणी दे विच, जोती-जोत समाया !!
वडभागी ओह रब्ब दा बन्दा, मेनू जिस चेताया ! शोभा लई गुरु नानक जी दी, हीला 'शशि' बनाया !!
  
                

Friday, November 19, 2010

प्यार अपनों से कर के पछताए ! अश्क आँखों के सूख न पाये !!
शिकवा किस से करैं, करैं किसका ! कितने अपनों के नाम गिन्वायें !!


ऐसे भी हैं गुनाह, न हो जिनका ऐतराफ !
 हमने तो शोर-ए-दिल को, दिया नाम-ए-ऐतराफ !!

shoredil

खूने-जिगर न चाह के, पीना पढ़ा मुझे ! सागर को रख के, आँख में, जीना पड़ा मुझे !!
दामन गरीब को, उसी दामन के, तार से ! हालात से लाचार हो, सीना पड़ा मुझे !!
सच है रहे-हयात में, दुष्वारियों के बीच ! रह कर ही ज़िन्दगी का, करीना पड़ा मुझे !!
रह-रह के सोचता हूँ, आखिर मैं कौन हूँ ! अब तक नहीं मिला है, कोई आईना मुझे !!
घबरा के सोचता है, मरने की क्यूँ 'शशि' !खुश हो, किसी के वास्ते, जीना पड़ा तुझे !!

Thursday, November 18, 2010

shore dil

झूठ खूबी से बोल लेते हैं 1 कर वो अच्छे  कलोल लेते हैं 11
झूठ भी झूठ सा नहीं लगता ! रंग ऐसा वो घोल लेते हैं !!
उनको ऐसा कमाल हासिल है !प्यार काँटे पे, तोल लेते हैं !!
मात देनी हो, जब घटाओं को ! अपनी जुल्फें वो खोल लेते हैं !!

 बात जब भी चली है, सपनों की !
याद आई है, मुझको अपनो की !!

Wednesday, November 17, 2010

shore dil

खूब मुनसिब ने मुन्सफी की है1 आज इन्साफ को सजा दी है 11

उसकी मजबूरियाँ रही होंगी1 उसने जो होश में खता की है 11

होश्यारी या बे-ख्याली में1 उसने इख्लाक से, जाफा की है 11
हक की बातों में, कुछ नहीं रखा 1 बात ये कर के सच दिखा दी है ११
भूल मेरी थी, भूल बैठा था 1 सारी दुनियाँ नहीं 'शशि' सी है 11

Monday, November 15, 2010

shoredil

गिरह कैसी हो खोल लेता हूँ !
गम, ख़ुशी दे के, मोल लेता हूँ !!
अब तो, आदत है, बन गयी मेरी !
बोल होंठो पे, तोल लेता हूँ !!

Sunday, November 14, 2010

Shoredil

लाखों चाहे नाम हैं, चाहे  रूप अनेक !
साईं कह गए सत्य  हैं, सब का मालिक एक !!
कितना भी मजबूर हो, कितना भी लाचार !
साईं तेरे पाँव की, राज से हो उपचार  !!

Saturday, November 13, 2010

shoredil

हमसफ़र, हमराह, हमदम, आप बन पाये नहीं !
क्या हुआ, आने का कहकर, आप फिर आये नहीं !!
नींद गर आती तो शायद, आप आते ख्वाब  में !
लाख चाहा, फिर भी खुद को,हम सुला पाये नहीं !!
दिल गवाया, चैन खोया, है तुम्हारे इश्क में !
सच है यह, की आज तक हम, फिर भी पछताए नहीं !!
आप की, आँखों को बस, देखा ही था, चूमा न था !
आज तक उसका नशा है, होश में आये नहीं !1
दामने-दिल अपना हमने, होते देखा तार-तार !
आपकी खुशियों की खातिर,कुछ भी कह पाये नहीं !!

Friday, November 12, 2010

shoredil

मैं शौक- ए-मोहब्बत से, बाज़ आ गया हूँ ! ऐ साकी तेरे पास आज आ गया हूँ !!
गल्त है मोहब्बत, मोहब्बत से मिलती ! समझ के ज़हाँ से यह राज़ आ गया हूँ !!
फरेबी धुनें,  जो थे,  मुझको सुनाते !  मैं सब तोड़ करके, वो साज़ आ गया हूँ !!
सुना है सकूँ, बस यहीं पर  है मिलता ! तेरे  दर पे, बन्दा-नवाज़ आ गया  हूँ !!
'शशि' तुम, निभाते रहो रस्म-ऐ-उल्फत ! भुला के, मैं रस्म-ओ-रिवाज़ आ गया हूँ 1 !

shoredil

नई अदा से मोहब्बत जता रहा है कोई ! उन्हीं से उनके लिए ख़त लिखा रहा है कोई !!
कहा गया न जुबां से जो रूबरू उनके ! बिठा के पास उन्हें , सब लिखा रहा है कोई !!
वो पूछते भी हैं, उलझा के बातों बातों में ! अदा से नाम उन्ही का, बता रहा है कोई !!
हसद ज़बीं पे,नुमाया है, दिल पे क्या जाने !उन्हें यूँ खून के आँसू, रुला रहा है कोई !!
मिलेगा ख़त तो, वो खुश होंगे या खफा होंगे ! नसीब अपना 'शशि', आज़मा रहा है कोई !!

Thursday, November 11, 2010

shore dil

माँ का नाम होंठों पर, जब कभी भी आता है !
इक हसीं सा दिल को, मिल सकून जाता है !1
जब भी आदमी खुद को, मुश्किलों में पाता है !
बेबसी  के आलम में, माँ  को ही बुलाता  है !!
हम भले भुला डालें, माँ के प्यार को लेकिन !
माँ दुआयें देती  है, माँ को प्यार आता है 11
दूर जो करे खुद से, वो तो खुद विधाता है !
जो  गले लगाती है, वो भवानी माता है !!

Wednesday, November 10, 2010

shoredil

इस तरह तर्के-ताल्लुक का,हुआ है वाक्यात !
न भुला पाउँगा शायद, वाक्या, यह ता-हयात !! न भुला
उम्र भर के साथ की, कसमों का, होगा यह हश्र !
हम बिछड़ जायेंगे जल्दी, कुछ न थी इसकी खबर !!
देखनी तंहा पड़ेगी, मुजको अब यह कायनात ! न भुला
भूल जाऊँगा उसे, मुमकिन मुझे लगता नहीं !
कोई भी जलवा जहाँ का, अब मुझे जँचता नहीं !!
और ज्यादा हो गयीं हैं, ज़िन्दगी की मुशक्लात !!  न भुला 

Tuesday, November 9, 2010

shoredil

इब्तदा थी मैं इन्तहा समझा ! एक गुलचीं को बागबाँ समझा !!
भूल कह लो इसे या नादानी! बेरहम को है मेहरबाँ समझा !!
ज़हन में इतने चेहरे बसते हैं !मैंने खुद को ही कारवाँ समझा !!
खुद फरेबी में ज़िन्दगी गुजारी ! झूठ को सच सदा यहाँ समझा !!
राख थी जो मेरे नशेमन की !उसको उड़ता हुआ धुआं समझा !!
कोई मकसद नहीं है जीने का ! बाद सब कुछ शशि गवाँ समझा !!

Monday, November 8, 2010

shore dil

धोखे ही धोखे इश्क में, हालाँकि खाये हैं !
अब तक न शौके-इश्क से, हम बाज़ आये हैं !!
माना मिली शिकस्त है, हर बार ही हमें !
हर बार हमने जीत के, सपने सजाये हैं !!
शिकवा नहीं किया है, किसी से ज़हान में !
खा के फरेब इश्क में,हम मुस्कराये   हैं !!
सब कुछ लुटा के हमने, वफ़ा की तलाश में !
रुसवाइयों के साथ-साथ, गम भी पायें हैं !!
हर शख्स हमको देख कर, हैरत से यह कहे !
हद है, खुदा ने, ऐसे भी इंसान बनाये  हैं !!  

Sunday, November 7, 2010

shor e dil

बन्दा हूँ भगवान् नहीं हूँ, पत्थर का इंसान नहीं हूँ !
वक़्त के साथ बदल सकता हूँ, कोई वेद-पुराण नहीं हूँ !!
मैं भी गलती कर सकता हूँ, धर्म नहीं हूँ, ज्ञान नहीं हूँ !
हर्फ़ हूँ मैं मिट, मिट जाने वाला, गीता नहीं, कुरआन नहीं हूँ !!
बुरा लगे जो आँख किसी को, ऐसा कोई निशान नहीं हूँ !
सीख रहा हूँ रस्मे ज़माना, इतना भी अनजान नहीं हूँ !!
                अपने से मत बहतर समझो !
                 शशि हूँ आसमान नहीं हूँ !!

Saturday, November 6, 2010

shoredil

दीपावली है, दीप जलाने की रात है 1
यह रात सिर्फ ,खुशियाँ मनाने की रात है !!
नफरत हो दूर, सब के दिलों से दुआ करो !
यह मिल के, गीत प्यार के, गाने की रात है !!
 ऐसा बने माहोल, दीवाली हो रोज़-रोज़ !
हर रोज़ सब कहैं, की दीवाली की रात है !!
सब खुश हों, मालामाल हों, कोई न हो उदास !
बने सबकी बिगड़ी बात, दिवाली की रात है !!

Monday, November 1, 2010

shoredil

बड़ी मुश्किल से आज़ादी मिली है !
तखय्यल की हसीं वादी मिली है !!
भटकता ही रहा हूँ आज तक मैं !
हाँ अब बसने की आज़ादी मिली है !!

अभी सेवा- निवर्त हुआ हूँ !