Tuesday, July 26, 2011

शोर-ए-दिल


यह चक्कर क्या है, कि चक्कर समय का |
चला रहता है, यह थमता नहीं है ||

बुढापा इस कदर, हावी हुआ है |
जो पच जाता था, अब पचता नहीं है ||

मेरे ज़ख्मों पे, मरहम मत लगाओ |
अब इससे भी तो, कुछ बनता नहीं है ||

बहुत मांगीं दुआएँ, थक गया हूँ |
दुआओं में असर, लगता नहीं है ||

वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||

हमें लगता था, कि वह हस रहा है |
अस्ल मैं जो कभी, हँसता नहीं है ||

हुआ करती थी इक, बस्ती यहाँ पर |
कोई जिसका निशाँ, मिलता नहीं है ||

शोर-ए-दिल

बन्दा हूँ, भगवान नहीं हूँ |
पत्थर का इंसान नहीं हूँ ||

वक़्त के साथ, बदल सकता हूँ |
कोई वेद-पुरान नहीं हूँ ||

मैं भी गलती कर सकता हूँ |
धर्म नहीं हूँ, ज्ञान नहीं हूँ ||

हर्फ़ हूँ मैं, मिट जाने वाला |
गीता नहीं, कुरान नहीं हूँ ||

बुरा लगे जो, आँख किसी को |
ऐसा कोई, निशान नहीं हूँ ||

सीख रहा हूँ, रस्में-ज़माना |
इतना भी, अनजान नहीं हूँ ||

अपने से मत बेहतर समझो |
'शशि' हूँ ,आसमान नहीं हूँ ||

शोर-ए-दिल


तिनका हूँ, शहतीर नहीं हूँ | 
ज़िन्दां हूँ, तस्वीर नहीं हूँ ||

टूट रहा हूँ, धीरे-धीरे |
मैं पुख्ता, तामीर नहीं हूँ ||

हैरत से, मत देखो मुझको |
घायल हूँ मैं, तीर नहीं हूँ ||

ख्वाब किसी का, हूँ मैं शायद |
ख़्वाबों की, ताबीर नहीं हूँ ||

मेरा होना, है सच्चाई |
पानी पर, तहरीर नहीं हूँ ||

कतरे का भी, इक हिस्सा हूँ |
कल-कल करता, नीर नहीं हूँ ||

शायद मरहम, नहीं हूँ लेकिन |
चोट नहीं हूँ, पीर नहीं हूँ ||

'शशि' हमेशा, है यह कहता |
कर्म हूँ मैं, तकदीर नहीं हूँ ||  

shor-e-dil


नई अदा से, मुहब्बत, जता रहा है कोई |
उन्हीं से उनके लिए, ख़त लिखा रहा है कोई ||

कहा गया न, जुबां से, जो रूबरू उनके |
बिठा के पास उन्हें, सब सुना रहा है कोई ||

वो पूछते भी हैं, उल्झा के, बातों-बातों में |
अदा से नाम उन्हीं का, बता रहा है कोई ||

हसद ज़बीं पे नुमायाँ है, दिल पे क्या जाने |
उन्हें यूँ खून के, आँसू रुला रहा है कोई ||

मिलेगा ख़त, तो वो, खुश होंगे या खफा होंगे |
नसीब अपना 'शशि', आजमा रहा है कोई ||  

walwaley

यह जो ज़िन्दगी की किताब है |
यह अजीब है, यह अज़ाब है ||
कभी खुश्क सहरा को, मात दे |
कभी खूब तेज़, सैलाब है ||
कभी दिन को, तारे दिखाई दें |
कभी शब् को, आफताब है ||
यह किसी पहेली से कम नहीं |
यह तो ला-जवाब हिसाब है ||
'शशि' याद रखना, यह फलसफा |
यहाँ नेकी करना, सबाब है ||

gazal

ख़ुशी से कौन, लुटने के लिए, बाज़ार आता है |
यकीं कर लो जो आता है, वो हो लाचार आता है ||
खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियाँ लुटा रही हूँ |
बिजली गिरी थी मुझ पे, सो जगमगा रही हूँ ||
बचपन से आजतक का, हर पल है यद् मुझको |   
अपनों ने ही किया है, लोगो, नाशाद मुझको ||
सच मानो या न मानो, मैं सच सुना रही हूँ | खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियाँ लुटा रही हूँ ||
बचपन न मुझ पे आया, न सुनी कोई कहानी |
वहशत, हवास ने मुझको,सौगात दी जवानी  ||
बूढी हूँ दिल से लेकिन, मैं जवाँ कहा रही हूँ | खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियां लुटा रही हूँ ||
कोई पासबाँ नहीं है, कोई महर्बां नहीं है |
जो मेरी पुकार सुन ले, कोई नौजवाँ नहीं है ||
छले छुपा के दिल के, मैं मुस्करा रही हूँ |  खुद लुट चुकी हूँ लेकिन, खुशियां लुटा रही हूँ ||