Sunday, June 12, 2011

वलवले

ज़िन्दगी का, सफ़ा भर गया |
अब बचा है, सिर्फ हाशिया ||
याद आता है, रह-रह के अब |
ज़िन्दगी का, हर इक वाक्या ||
बात आख़िर समझ आ गई |
ये ज़हाँ, न तेरा न मेरा ||
मुझसे तुम, बेवज़ह हो खफा |
सब खुदा की, रज़ा से हुआ ||
मरने वाला तो, फिर जी पड़ा |
ज़िन्दगी-मौत में,फर्क क्या ||
सीखी जीने की, जिस दिन कला |
दे दी उस दिन, कज़ा ने सदा ||
कैसे कर दे, 'शशि' फैसला |
क्या बुरा है यहाँ क्या भला || 
   

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