चमन में गुल, महकने लग गए हैं |
परिंदे भी ,चहकने लग गए हैं ||
सुना है इन दिनों, ज़न्नत में अक्सर |
फ़रिश्ते भी , बहकाने लग गए हैं ||
ज़मीं पर भी, हुईं तबदीलियाँ है |
यहाँ पत्थर, पिघलने लग गए हैं ||
'शशि' अब खुद ही तुम, खुद को बदल लो |
सभी मौसम, बदलने लग गए हैं ||
Very Fine.
ReplyDeleteThe flow of your poetry flows itself.
The glow of your poetry glows itself.
The blow of your poetry blows itself.