Sunday, June 19, 2011

वलवले

चमन में गुल, महकने लग गए हैं |
परिंदे भी ,चहकने लग गए हैं ||
सुना है इन दिनों, ज़न्नत में अक्सर |
फ़रिश्ते भी , बहकाने लग गए हैं ||
ज़मीं पर भी, हुईं तबदीलियाँ है |
यहाँ पत्थर, पिघलने लग गए हैं ||
'शशि' अब खुद ही तुम, खुद को बदल लो |
सभी मौसम, बदलने लग गए हैं || 

1 comment:

  1. Very Fine.
    The flow of your poetry flows itself.
    The glow of your poetry glows itself.
    The blow of your poetry blows itself.

    ReplyDelete