Monday, November 22, 2010

शोर-ऐ-दिल

तडपत-तडपत कटी रैना, कोई उसको न जा कहना !
जिसकी है पहचान यह गहना, चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना !!
जब से उसका चेहरा देखा, अपने सर पर सेहरा देखा !
ऐसा ख्वाब सुनहरा देखा, दूभर जिसकी दूरी सहना !! चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना ......
जब से मेरे दिल में आई, बन बैठी मेरी परछाई !
राह नई जीवन ने पाई, झरने सीखें, जिससे बहना !!  चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना .......
जिसका मन है, पावन-गंगा, दया भाव ने, जिसको रंगा !
देख जिसे, मैं बना पतंगा, उसकी शान का, क्या है कहना !! चन्द्र-वदन, मर्ग-लोचन नैना ..
शोर-ऐ-दिल 

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