धोखे ही धोखे इश्क में, हालाँकि खाये हैं !
अब तक न शौके-इश्क से, हम बाज़ आये हैं !!
माना मिली शिकस्त है, हर बार ही हमें !
हर बार हमने जीत के, सपने सजाये हैं !!
शिकवा नहीं किया है, किसी से ज़हान में !
खा के फरेब इश्क में,हम मुस्कराये हैं !!
सब कुछ लुटा के हमने, वफ़ा की तलाश में !
रुसवाइयों के साथ-साथ, गम भी पायें हैं !!
हर शख्स हमको देख कर, हैरत से यह कहे !
हद है, खुदा ने, ऐसे भी इंसान बनाये हैं !!
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