Sunday, November 21, 2010

shoredil

खोजत-खोजत खो गए, जाने कितने लोग !
हरी खोजे जो आप में ,विरला ही कोई होग !!
अपना मरना भूल के, जग से कीनी प्रीत !
भूल गए इस कथन को, मन-जीते, जग-जात !!
भला न बेशक कीजिये, बुरा न करना भूल  !
जीवन में सुख-शांति, का यह मंतर मूल !!
एक बार तो भूल है, बार-बार है दोष !
माफ़ी पहली बार की, दोषों की सजा ठोस !!

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