Friday, November 12, 2010

shoredil

मैं शौक- ए-मोहब्बत से, बाज़ आ गया हूँ ! ऐ साकी तेरे पास आज आ गया हूँ !!
गल्त है मोहब्बत, मोहब्बत से मिलती ! समझ के ज़हाँ से यह राज़ आ गया हूँ !!
फरेबी धुनें,  जो थे,  मुझको सुनाते !  मैं सब तोड़ करके, वो साज़ आ गया हूँ !!
सुना है सकूँ, बस यहीं पर  है मिलता ! तेरे  दर पे, बन्दा-नवाज़ आ गया  हूँ !!
'शशि' तुम, निभाते रहो रस्म-ऐ-उल्फत ! भुला के, मैं रस्म-ओ-रिवाज़ आ गया हूँ 1 !

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