Monday, March 21, 2011

वलवले

नारी तुम कैसे अबला हो | तुम ही तो जग में सबला हो ||
नयन तेरे जो जल बरसाए | वो पिघले जो न पिघला हो ||
तेरे नाटक बड़े निराले |छलियों को भी जिसने छाला हो ||
धीमी सुर और तीखे बोल |जग में सुन्दर एक बला हो ||
नारी तेरा मन वो मन है | द्वेष का जिसमे दीप जला हो ||
न ममता न त्याग की मूरत | आस्तीन में सांप पला हो ||
शक्ति का ही रूप है नारी |'शशि' गर उसका मन उजला हो ||

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