Monday, May 9, 2011

 जो बेशर्मी से, मुझ पे हँस रहा था |
सुना, घर जा के वो, रोया बहुत है ||
गिना करता है जो, रातों को तारे |
सुना वो उम्र भर, सोया बहुत है ||
कभी पूछो की, पाया क्या अमीरों |
कहेंगे पाया कम, खोया बहुत है ||
नहीं जाता है क्यूँ, ये दाग यारो |
इसे रगडा बहुत, धोया बहुत है || 
ख़ुशी उसको कहाँ, तस्कीन देगी |
हमेशां जिसने दुःख, बोया बहुत है ||
बचे कितना भी कम, दे दो 'शशि' को |
उसे तो, कम से कम, गोया बहुत है ||  

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