Sunday, May 15, 2011

वलवले

खुदा पहले है, तय करता, कहाँ, कब, किसका दम निकले |
सित्म जिसको कहे दुनियाँ, खुदा के वो करम निकले ||
शुब्हा होने लगा है, दोस्तों पे, दुश्मनों सा जो |
खुदा से है दुआ इतनी , कि वो मेरा भर्म निकले || 
जिन्हें ता-उम्र, अपना मानने से, मैं था कतराता |
मुसीबत जब, पड़ी मुझ पर, वो मेरे हम-कदम निकले ||
नहीं एहसास होता कुछ, कि दिल जिस्म जैसा है | 
अगर काटें,नहीं मुम्किन, ख़ुशी टपके या गम निकले || 
सजा से कम नहीं है,ज़िन्दगी, ईनाम मत समझो |
ये दुनियाँ छोड़ जानी है, सभी को, जब भी दम निकले ||
ख़ुशी जो मेरी किस्मत में, लिखी हो, गम में न बदले |
नहीं लालच कि ज्यादा हो, वो बेशक, कितनी कम निकले ||
संभल कर दोस्ती, खुद से, 'शशि' करना, नसीहत है |
ज़फाओं के मुक़ाबिल में, वफ़ा थोड़ी सी कम निकले ||



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