Friday, November 19, 2010

shoredil

खूने-जिगर न चाह के, पीना पढ़ा मुझे ! सागर को रख के, आँख में, जीना पड़ा मुझे !!
दामन गरीब को, उसी दामन के, तार से ! हालात से लाचार हो, सीना पड़ा मुझे !!
सच है रहे-हयात में, दुष्वारियों के बीच ! रह कर ही ज़िन्दगी का, करीना पड़ा मुझे !!
रह-रह के सोचता हूँ, आखिर मैं कौन हूँ ! अब तक नहीं मिला है, कोई आईना मुझे !!
घबरा के सोचता है, मरने की क्यूँ 'शशि' !खुश हो, किसी के वास्ते, जीना पड़ा तुझे !!

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