Monday, November 29, 2010

शोर-ऐ-दिल

मैं लिखने के बहाने ढूँढता हूँ, मैं लफ्जों में खजाने ढूँढता  हूँ !
नहीं मुमकिन है जिनका लौट आना, मैं वो गुजरे ज़माने ढूँढता हूँ !!
दर्द से सब ही खौफ खाते हैं ! दर्द कब सब के हिस्से  आते हैं !!
दर्द हमदर्द से भी बह्हातर हैं ! दर्द ही हौंसले बढ़ाते हैं !!
रोने के बहाने मत ढूँढ़ो, कुछ हसने की तदबीर करो !
हाथों की लकीरें मत देखो, खुद किस्मत को तहरीर करो !!
धुप और छावँ मिलते देखे हैं ! शहर और गाँव मिलते देखे हैं !!
मेरी आँखों ने आप सच माने, हँस और काँव मिलते देखे हैं !!

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